सदरुश्शरिया, इमाम हम्माद व इमाम जज़ूली की याद में हुई फातिहा ख़्वानी

गोरखपुर, उत्तर प्रदेश –

सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार व चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में ‘बहारे शरीअत’ के लेखक हज़रत सदरुश्शरिया अल्लामा मुफ़्ती अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमां, इमाम हम्माद बिन इमामे आज़म अबू हनीफा अलैहिर्रहमां व ‘दलाइलुल खैरात’ के लेखक इमाम सैयद मोहम्मद अल जज़ूली अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अदब के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी की गई।

सब्जपोश हाउस मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि हज़रत सदरुश्शरिया इल्मे जाहिर व बातिन दोनों के संगम थे। आपके वालिद का नाम हज़रत मौलाना हकीम जमालुद्दीन था। आपका घराना बहुत इल्मी था। आपने मदरसा हनफिया जौनपुर से तालीम हासिल की। इसके अलावा हज़रत हिदायतुल्लाह रामपुरी व हज़रत अल्लामा वसी अहमद सूरती से भी तालीम हासिल की। लखनऊ से इल्मे तिब हासिल किया। आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमां आपसे बहुत मुहब्बत करते थे। आला हज़रत ने ही आपको ‘सदरुश्शरिया’ का लकब दिया था। आपकी खूबी की वजह से आला हज़रत ने आपको पूरे हिन्दुस्तान का काजी-ए-शरा नियुक्त किया था। आपने बहारे शरीअत, फतावा अमजदिया, शरहे तहतावी शरीफ आदि कई नायाब किताबें लिखीं। आला हज़रत के किए हुए क़ुरआन के उर्दू तर्जुमे का नाम ‘कंजुल ईमान’ है। इस तर्जुमे को आला हज़रत से कराना भी हज़रत सदरुश्शरिया की मेहनत का फल है। आप आला हज़रत के मुरीद व खलीफा थे।
वहीं इमाम जज़ूली बहुत बड़े आशिके रसूल, वली व आलिम थे जिन्होंने उम्मत को ‘दलाइलुल खैरात’ जैसी अज़ीम किताब दी। जो दरूद शरीफ का ज़खीरा है। ‘दलाइलुल खैरात’ पढ़कर पूरी दुनिया के औलिया, उलेमा व अवाम के दिल को सुकून मिलता है। आपने दुनिया के कई मुल्कों का सफ़र किया। इल्म हासिल किया। औलिया किराम की सोहबत अख्तियार की। आपको ज़हर देकर शहीद किया गया। 4 ज़िल क़ादा 869 हिजरी में शहादत हुई। आपका मजार मराकश, मोरक्को में है। जहां हर दिन अकीदतमंदों का मजमा लगा रहता है।
चिश्तिया मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि हज़रत सदरुश्शरिया एक बाअमल बड़े आलिमे दीन थे। आपनेे कई बड़े-बड़े मदरसों में शिक्षण कार्य किया। आपके द्वारा लिखी गयी मशहूर किताब ‘बहारे शरीअत’ उर्दू ज़बान में बहुत आसान व सरल है। यह किताब इस्लामी निज़ाम का तर्जुमान है और ज़िन्दगी के हर शोबे में रहनुमाई के लिए काफी है। ‘बहारे शरीअत’ की शक्ल में हज़रत सदरुश्शरिया का मुसलमानों पर बड़ा एहसान है। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जदीद निज़ामे तालीम तरतीब देने के लिए एक कमेटी बनाई गयी थी, जिसमें आपको भी शामिल किया गया था। आपका मजार कस्बा घोसी (मऊ) में है। वहीं इमाम हम्माद बिन इमामे आज़म अबू हनीफा बहुत बड़े आलिम, वली व इबादतगुजार गुजरे हैं। जिनके इल्म पर पूरी दुनिया के मुसलमानों को फख़्र है।

आगाज़ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुआ। नात-ए-रसूल पढ़ी गई। अंत में दरूदो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनों अमान व कोरोना से निजात की दुआ मांगी गई। उर्स में आसिफ रज़ा, शाहनवाज़, मो. फैज, हाजी बदरुल हसन, मो. शोएब, सैफ अली, ताज मोहम्मद, मुख्तार अहमद, शारिक अली, फुजैल, सहाब, मुबारक अली, असलम अहमद, आरिफ, सज्जाद अहमद, समीर अली, फैज़ान, बब्लू खान आदि ने शिरकत की।

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