बलिया : जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीत कुमार गुप्ता के संरक्षण में ‘ भारतीय शिक्षा प्रणाली में भारतीय ज्ञान परंपरा की प्रासंगिकता’ विषयक एफडीपी के अंतर्गत शनिवार को प्रथम सत्र के वक्ता डाॅ. अनूपपति तिवारी, भारत अध्ययन केंद्र, बीएचयू ने ‘भारतीय विधि शास्त्र’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि भारतीय परंपरा में विधि व्यवस्था श्रुति, स्मृति, कल्पसूत्र, अर्थशास्त्र नीतिशास्त्र व लोकाचार की परंपरा पर आधारित थी। स्मृतियाँ देश व कालानुसार परिवर्तित होती रहीं। पाश्चात्य विद्वानों ने भारत में इहलौकिक ज्ञान का अभाव बताते हुए यहाँ की विधि व्यवस्था को नकारा जबकि नारद व पराशर स्मृतियाँ , शुक्रनीतिसार तथा कौटिल्य का अर्थशास्त्र आदि में भारतीय विधि व्यवस्था के व्यावहारिक पक्ष का विस्तृत विश्लेषण है।
द्वितीय सत्र में डाॅ देवेश मिश्र, सह आचार्य,संस्कृत, इग्नू ने ‘भारतीय गुरुकुल व्यवस्था’ पर व्याख्यान देते हुए कहा कि गुरुकुल परंपरा शिक्षा प्रदान करने की एक सुव्यवस्थित प्रणाली थी, जिसमें राज्य का हस्तक्षेप नहीं था। गुरुकुल जाने वाले विद्यार्थियों का भरण- पोषण, शैक्षणिक तथा आध्यात्मिक उन्नयन गुरु पर आश्रित था। इसीलिए गुरु का बहुत महत्व था। ज्ञान तथा शिक्षण के तरीकों के आधार पर गुरुओं की कई श्रेणियाँ आचार्य, श्रोत्रिय, चरक, उपाध्याय आदि होती थीं।
कार्यक्रम में संचालन डाॅ. प्रमोद शंकर पाण्डेय, स्वागत डाॅ. गुंजन कुमार, धन्यवाद ज्ञापन कुलसचिव एस एल पाल ने किया। इस अवसर पर डाॅ. पुष्पा मिश्रा, डाॅ. अजय चौबे, डाॅ. प्रियंका सिंह, डाॅ. रजनी चौबे, डाॅ. सरिता पाण्डेय, डाॅ. संदीप यादव आदि विवि परिसर एवं महाविद्यालयों के प्राध्यापक उपस्थित रहे।